Wednesday, February 4, 2009

हम

हम छी एक टा खाली घैला ...

ताप संतिप्त , व्याकुल जननी के
कर्महीन , जलरहित जलधर।
जीवन के संग्राम में भटकैत
कउनु लोहित रहित जीवित धर।

घस्कैत ,तृष्णा, शुष्क ठोर सब
हमरा जीवित बुझी आबै छैथ ;
पाबि के हमरो ओतबे व्याकुल
मुंह मोरि गरियाबाई छैथ ।

हमहूँ घुराकलौं उही मुंह के
जिम्हर हरियर देलक देखाय;
रास्ता में देखनाहर हंसला
खली घैला धन्कल जाय।

हरियरी के जैर में बैठ के
सांप बजल आबू यजमान !
ई सब पुलकित जीव सब जेकाँ
अहूँ करू ई अमृत पान ।


एखनोऊ हम छी खाली घैला ,
कानू के व्यस्त कंसार में;
अप्पन सफल उपयोग करबैत
ई उपयोग जनल संसार में ।